याद रहेगा वह विद्यालय --राष्ट्रपति भवन स्कूल नई दिल्ली


याद रहेगा वह विद्यालय --राष्ट्रपति भवन स्कूल नई दिल्ली 

रईस सिद्दीक़ी 

मोब. 98 11 42 64 15 
ईमेल : rais.siddiqui.ibs @ gmail.com

मेरे लये यह सुनहरा अवसर है की मैं अपने उन दिनों को याद कर रहा हूँ जब मैं ने लखनऊ  विश्वविद्यालय से बी..और कानपूर से बी.एड करने के पश्चात् १९८० में दिल्ली का रुख किया था. उस समय भी रोज़ी-रोटी कमाना एक बहुत बड़ा संघर्ष था. आज की तरह रोज़गार के मौके नहीं थे क्यूंकि कॉर्पोरेट जगत आज की तरह  विशालकाय नहीं था।  अधिकतर  सरकारी नौकरियों  पर निर्भर रहनापड़ता  था  और सरकारी नौकरी ही पढ़े लिखों के लिए शिखर पर पहुँचने के सामान था.  
दिल्ली आकर मैं ने भी नौकरी तलाश करने का संगर्ष किया   शुरू में दिल्ली के शाहदरा में एक कोचिंग सेंटर  में अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया  लेकिन इस से इतनी आमदनी नहीं थी की कमरे का किराया और खाने - पीने  की सहज व्यवस्था हो सके. लिहाज़ा   रोज़गार -कार्यालय में टी.जी .टी  और  एल.टी.  अध्यापक पद हेतु रजिस्ट्रशन करवाया।  १९८३ में  शिक्षा निदेशालय दिल्ली से भाषा अध्यापक के साक्षात्कार के लिए पत्र मिला  और   २४--१९८३ को नियुक्ति  आदेश पत्र के साथ  जब मैं राष्ट्रपति भवन से जुड़ा  राष्ट्र पति सम्पदा / प्रेजिडेंट स्टेट  के अंदर गवर्नमेंट  को -एड  सीनियर सेकंडरी स्कूल   ज्वाइन करने  पहुंचा तो मेरी ख़ुशी ठिकाना नहीं था क्यूंकि यह विद्यालय कई एकड़ मैं स्थित है. बड़ा सा खेल का  मैदान,  सिंगल स्टोरी  बिल्डिंग  में बहुत से कमरों पर आधारित बड़े -बड़े साफ़ सुथरे क्लास रूमस्पीकर और दूसरी सुविधाओं से सुसज्जित  किसी भी बड़े पब्लिक स्कूल से हमारा स्कूल कम  नहीं  था. 
वास्तव में यह स्कूल प्रेजिडेंट स्कूल /राष्ट्रपति भवन स्कूल  के नाम से  जाना जाता थाऔर इस विद्यालय में  राष्ट्रपति भवन में काम करने वाले अधिकारीयों और कर्मचारियों के अलावा मंत्री, एम.पी., एम.एल..और पार्षद के बच्चे पढ़ते  थे.  यहाँ दाख़िला पाना आसान नहीं था क्यूंकि यह विद्यालय  के.जी. प्राइमरी , मिडिल, सेकंडरी और  सीनियर सेकंडरी को -एड स्कूल है। अब इस विलय का नाम डॉ. राजेंद्र प्रसाद सर्वोदय विद्याला रख दिया गए है। 
इस विद्यालय को मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ क्यंकि की इस
विद्यालय ने  मुझे अनेक अविस्मरणीय अवसर दिए हैं और  मेरे व्यक्तित्व   के विकास में यादगार और अहम् रोल अदा  किया है   
अध्यापक बनने से पहले मैं आकाशवाणी  में  आकस्मिक हिंदी एवं उर्दू  समाचार वाचक , उद्घोषक, नाट्यस्वर कलाकार, कहानी वार्ताकार की हैसियत से जाता रहता था. शायद इस कारण प्रिंसिपल   ने मुए चार हाउसेस का चीफ हाउस   मास्टर और  डिसिप्लिन इंचार्ज  बना दिया. इस से मुझे खुद को  अनुशासित  रहने और छात्र -छात्राओं  को अनुशासतीत करने तथा विभिन्न  सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रति  प्रेरित करने   की  अप्रत्यक्ष रूप से ट्रेनिंग  मिली. मैं बच्चों को आकाशवाणी  और दूरदर्शन के कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए लेजाता जिस कारण मेरे और छात्रों के बीच  स्नेही सम्बन्ध बने। आज भी बहुत से छात्र मुझे याद करते रहते हैं. 
मैं यहाँ मिडिल क्लासेस  को  उर्दू और  नवीं  एवं दसवीं को अंग्रेज़ी  पढ़ाता था, वर्ष  १९८५-८६ में  दसवीं क्लास का १०० प्रति शत  रिज़ल्ट  दिया। इस से मुझे   वेकेंट  पीरियड में  ग्यारहवीं और बारहवीं के छात्रों को अंग्रेजी पढ़ाने का अवसर मिला जिसका फायदा यह  हुआ की मुझे दूरदर्शन के स्कूल टी. वी.  के अंग्रेजी प्रोग्रामों  में काम करने का मौक़ा मिला,
 इतना ही नहीं  चीफ हाउस मास्टर होने  के नाते मुझे नवीं  और ग्यारहवीं के छात्र -छात्राओं  को लेकर ट्रैकिंग के  लिए  त्रिवेन्द्रम से कन्या कुमारी, कोल्हाई   ग्लैशियर कश्मीर, मसूरी और रॉक क्लाइम्बिंग के लिए नूह  हरयाणा गया।   छात्र के साथ छात्रा  को होना मेरी लिए बहुत बड़ी  ज़िम्मेदारी होती , मैं खुद भी  जवान अध्यापक था आयु में वरिष्ठ नहीं था। इस  स्थिति में सभी छात्र - छात्राओं  और अपने आपको अनुशासित रखने की कला सेखी। 
 यूनेस्को और गाँधी दर्शन पर अनेक सामान्य ज्ञान  की परीक्षाओं का आयोजन किया जिस से प्रबंधन क्षमता का विकास हुआ।  राज्य स्तर पर   सांस्कृतिक  कार्यकर्मों , नाटक  खेल कूद में छात्रों सहित भाग  लिया और मेरी टीम ने इनाम जीते, व्यक्तिगत  इनाम भी मिले जिसने  मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया  जो आगे चलकर भारतीय प्रसारण सेवा ( आकाशवाणी /दूरदर्शन ) में  मेरे बहुत काम आया.
इस तरह मेरा विद्यालय मुझे एक अध्यापक के  रूप में हमेशा याद रहेगा क्यूंकि मेरा विद्यालय मेरे लिए  २४--१९८३  से  १३-१२-१९९१ तक ,   केवल रोज़ी रोटी का ज़रिया   था  बल्कि मेरी शख्सियत के विकास के लिए मेरा गुरू  भी था और गुरु को  कभी भुलाया जा सकता और कभी उसका एहसान उतारा  जासकता है !




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